नागरिकों की दर्ज शिकायतों का एक प्रोसेस के तहत, बिना प्रार्थी को थका देने वाले फ़ॉलोअप अथवा पैरवी के स्वतः निवारण होना सुशासन की एक आदर्श स्थिति हो सकती है।
उ. प्र. सरकार द्वारा नारी सुरक्षा, सम्मान व स्वावलम्बन हेतु चलाया जा रहा ‘मिशन नारी शक्ति’ एक सराहनीय अभियान है। विशेषकर, थानों में महिलाओं के लिए अनिवार्य हेल्प डेस्क और पिंक–पैट्रोलिंग जैसे प्रावधान महिलाओं को उनके साथ हो रहे अपराध, उत्पीड़न इत्यादि को बिना झिझक रिपोर्ट करने के लिए अवश्य प्रेरित करेंगे। इसी प्रकार, सूचना तकनीक का प्रयोग कर विकसित ‘ई–संवाद‘ शिकायत निवारण प्रणाली नागरिकों को अपनी समस्या शासन / सम्बंधित विभाग तक पहुँचाने का एक कारगर प्लेटफार्म है।
सुशासन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु पूर्व एवं वर्तमान सरकारों द्वारा उठाये गए इस प्रकार के क़दम, जहाँ एक ओर आम जनता एवं शासन/ विभागों/ शासकीय कार्यालयों के बीच आसान एवं पारदर्शी तरीके से संवाद स्थापित करने में सहायक साबित हो रहे हैं | वहीं दूसरी ओर हम में से बहुत सारे लोग आज भी अपनी किसी समस्या को पुलिस थाने, तहसील, नगर निगम, बिजली विभाग व अन्य शासकीय कार्यालयों में लेकर जाने से कतराते हैं। उनको यह अंदेशा होता है कि उनके प्रार्थना पत्र, सम्बंधित विभाग द्वारा किसी प्रकार से स्वीकार हो जाने के बावजूद भी, सशक्त पैरवी के अभाव में बिना किसी कार्यवाही के ही अक्सर ठन्डे बस्ते में डाल दिए जाते हैं।
आम नागरिक की इस दुविधा की ताज़ा मिसाल आपको एक घटना के माध्यम से बताता हूँ। हाल ही में एक वरिष्ठ नागरिक की अयादत के लिए मैं अस्पताल गया तो मालूम हुआ कि उन बेचारे की कूल्हे की हड्डी फिसल कर गिर जाने के कारण टूट गयी थी। हुआ यूं कि उनको अपने घर से मुख्य सड़क तक आने के लिए एक ‘खुली नाली ’ डाक कर जाना पड़ता था। उनके पड़ोसियों ने उस खुली नाली का छोटा सा हिस्सा एक पाइप डाल कर ढक दिया, ताकि वहां से जाने वाले लोग आसानी से नाली पार कर सकें I पाइप डालने के कुछ दिनों बाद ही आस पास के कुछ शरारती तत्वों ने पाइप का मुंह बोरी व मिट्टी डाल कर बंद कर दिया, जिससे वहां पर फिर से पानी भर गया और उसी कीचड़ में बेचारे वह बुज़ुर्ग फिसल कर गिर पड़े I
मैंने उनके बेटे से पूछा कि आप लोगों ने उन अराजक तत्वों की शिकायत पुलिस या प्रशासन में दर्ज करवाई, तो उन्होंने उलटे मुझसे ही प्रश्न कर डाला, ‘उससे होगा क्या? जिन लोगों ने पाइप का मुंह बंद किया है, वह पास के ही एक मोहल्ले के दबंग लोगों के परिवार के लड़के हैं I इस प्रकार के लोगों से हम सीधे-सादे, नौकरी पेशा लोग किसी प्रकार की दुश्मनी नहीं लेना चाहते I हालाँकि मोहल्ले की महिलाएं, उन लोगों की इस हरकत से बहुत नाराज़ हैं और उन्होंने थाने में देने के लिए एक आवेदन पत्र तैयार भी कर लिया है I पर वे भी जानती हैं कि जब तक सम्बंधित विभाग में कोई अच्छी पहचान न हो या फिर किसी वी.आई.पी. द्वारा फ़ोन न करवाया जाये अथवा बार- बार वहां जा कर अधिकारियों से अपने केस की पैरवी न की जाये – तब तक इस प्रकार के आवेदन पत्रों पर अक्सर कार्यवाही नहीं होती है।‘ मैं उनकी इस परीकल्पना, नादानी और विवशता पर हैरान था I
एक अन्य सज्जन ने भी बताया कि लगभग एक वर्ष पूर्व उन्होंने ऑनलाइन ‘ई–संवाद शिकायत निवारण प्रणाली’ के माध्यम से अपने मोहल्ले में बिजली के खम्भे व स्ट्रीट लाइट लगवाने के लिए प्रार्थनापत्र दिया था I आवेदन के एक सप्ताह के भीतर ही सम्बंधित विद्युत्- उपकेंद्र के कर्मचारियों ने सर्वे करके उनकी शिकायत यह कहते हुए जल्दी से निस्तारित कर दी कि स्टोर में आवश्यक उपकरणों के आते ही खम्भे व स्ट्रीट लाइट लगा दिए जायेंगे I आज एक साल के बाद भी उस विभाग द्वारा यह कार्य पूरा नहीं किया गया है I सर्वे करने आयी टीम ने जाते हुए उन सज्जन से यह भी कहा था कि वे लोग ऑनलाइन शिकायत न किया करें, इससे विभाग का काग़ज़ी काम काफ़ी बढ़ जाता है I
इस बाबत मैंने लोकप्रिय आई.ए.एस.अधिकारी (से.नि.) श्री बादल चैटर्जी से भी यह जानना चाहा कि विभिन्न महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर रहते हुए वह, उनके पास आने वाली बड़ी संख्या में शिकायतों का इतनी दक्षतापूर्वक निस्तारण किस प्रकार कर पाते थे? उन्होंने बताया कि शिकायतों का उचित निस्तारण सुशासन की महत्वपूर्ण अलामत है I अपने कार्यकाल में उन्होंने एक मामूल बना लिया था कि रात में जब सारा स्टाफ घर चला जाता था तो वह डाक – पैड लेकर लगभग साढ़े दस बजे अपने ऑफिस में प्रतिदिन बैठ जाते थे और दिन में उनके पास आए तमाम आवेदन पत्रों को पढ़ कर, दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके पीड़ित व्यक्ति से स्वयं बात करने के उपरांत सम्बंधित अधिकारी को हिदायत देते थे कि वे प्रार्थी की समस्या का जल्द समाधान करें और जब उसका कार्य हो जाये तो उसके पास जाकर अधिकारी को अपने फ़ोन से प्रार्थी की, श्री चैटर्जी से बात करवानी होती थी I इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इन आवेदन पत्रों को स्वयं पढ़ने से उनको इस बात का पता भी चल जाता था कि उनके मण्डल अथवा ज़िले में कौन से अधिकारी अच्छा कार्य कर रहे और कितने लोग अपने काम को गंभीरता से नहीं ले रहे होते थे।
उनकी राय में, वर्तमान व्यवस्था को और अधिक उपयोगी बनाने के लिए अधिकारियों को बिना डरे, स्वेच्छा से क़ानून के दायरे में रहते हुए ‘शीघ्र निर्णय’ लेने की कला स्वयं के भीतर विकसित करनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी माना कि केवल एक अधिकारी सभी समस्याओं को हल नहीं कर सकता। उसके साथ एक संवेदनशील, कुशल तथा दक्ष टीम / स्टाफ़ का होना बहुत अहम है। वर्तमान डिजिटल प्रणाली का लाभ उठाते हुए भी अधिकारी एक सुगम एक्सेल ‘डैश बोर्ड ’ बनवाकर शिकायतों की स्थिति पर और अधिक कुशलतापूर्वक नज़र रख सकते हैं।
आम नागरिक की पंजीकृत शिकायत का एक प्रोसेस अथवा व्यवस्था के तहत, बिना प्रार्थी को थका देने वाले फ़ॉलोअप या पैरवी के, स्वतः उचित निस्तारण होना ही एक आदर्श स्थिति होगी। साथ ही इससे आम नागरिकों का सिस्टम पर विश्वास कई गुना और बढ़ जायेगा।