28 जून को पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी नरसिम्हा राव (PVNR) की 100 वीं जयंती के अवसर पर, कई दलों के राजनीतिक नेताओं द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। उनकी तुलना नेहरू से करते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.सी.आर ने कहा कि PVNR को भारत रत्न दिया जाना चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश में PVNR के नेतृत्व में कई दमदार आर्थिक सुधार पेश किये गए । लेकिन उनके बारे में कुछ अन्य बातें भी हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है:
(1) जब 1984 में सिखों का नरसंहार हुआ था, तब PVNR केंद्रीय गृह मंत्री थे। हालांकि दिल्ली पुलिस सीधे केंद्रीय गृह मंत्री के अधीन है, उन्होंने दिल्ली में हजारों सिखों की भयानक हत्याओं को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। जाहिर है इसलिए क्योंकि वह राजीव गांधी को नाराज़ नहीं करना चाहते थे। तो इस नाते उनके हाथों पर भी सिखों का खून लगा है, वे भी दोषी हैं।
मैंने नीचे दिए गए अपने लेख में गहराई से विवरण दिया है जिसे मेरे ब्लॉग Satyam Bruyat पे ज़रूर पढ़ें:
“The Sikh ‘ riots ‘ of 1984”
जैसा कि इस लेख में स्पष्ट है, श्री शांति भूषण, पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री, द्वारा अनुरोध किए जाने के बावजूद, PVNR ने भयावह नरसंहार को रोकने और इस मामले में किसी भी तरह का दखल देने से इनकार कर दिया, ज़ाहिर है क्योंकि उनको अपने राजनीतिक भविष्य की अधिक चिंता थी।
(2) जुलाई 1993 में जब PVNR अल्पसंख्यक केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रहे थे , तब उन्होंने लोकसभा में अविश्वास मत (vote of no confidence) में अपनी सरकार बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत (हर एक को 40 लाख रुपए) दी । उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई अन्य आरोप थे।
(3) जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया, तब PVNR ने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया, हालांकि वह प्रधान मंत्री थे। जिसके परिणामस्वरूप भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बड़े पैमाने पर पूजा स्थलों पे हमले और कई मौतें हुई।
मेरे विचार में, नेहरू के साथ PVNR की तुलना हास्यास्पद है। नेहरू एक विशाल और दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत का आधुनिकीकरण किया, और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं था।
दूसरी ओर, PVNR, एक मात्र कैरियरवादी ( careerist ) और एक चालाक ऑपरेटर ( fixer ) की भाँती थे।
(The opinions expressed in this article are those of the author’s own and do not reflect the opinions or views of The Rational Daily.)